शनिवार, 18 दिसंबर 2021

 मंच पर आसीन आदरणीय...

 पूरे विश्व के पूजनीय और आदरणीय महात्मा गांधी जी की 150वीं जन्म जयंती के इस पावन अवसर पर उपस्थित सभी का हार्दिक अभिवादन।

सभी को पता है महात्मा गांधी भारत के राजनेता थे जिन्होंने अपने देश को आजादी दिलाने में सबसे प्रमुख भूमिका निभाई। विश्व भर में, आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सभी देशों में इसी तरह के कई नेता अवश्य हुए हैं जो अपने देशवासियों के लिए परम आदरणीय हैं। उन्होंने भी अपने अपने देश के इतिहास के पन्नों में जगह बनाई है। लेकिन अपने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए भी संसार भर के लोगों के दिलों में बसने की योग्यता महात्मा गांधी ने जिस तरह से हासिल की है, ऐसी योग्यता कम नेताओं में ही देखी जाती है।

भारतीय राजदूतावास द्वारा नेपाल की राजधानी काठमांडू में सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की 150वीं जन्मजयंती मनाने का अपना अलग ही महत्व है, क्योंकि हमारी भूमि/हमारा देश नेपाल भी इसी आस्था के जनक महात्मा बुद्ध का देश है। भगवान बुद्ध ने आज से करीब ढाई हजार साल पहले सत्य और अहिंसा की जिस यात्रा की शुरुआत की थी, महात्मा गांधी ने भी उसी यात्रा को जारी रखा। ऐसा लगता है नेपाल की भूमि से सत्य और अहिंसा की रोशनी से संसार को नई राह दिखाने वाले बुद्ध ने ही भारतवर्ष में महात्मा गांधी के रूप में दोबारा जन्म लिया हो।

बहुत सारे लोगों के लिए परमाणु हथियारों के इस जमाने में सत्य और अहिंसा का शायद कोई मूल्य न हो, परंतु पूरी दुनिया को यह भी पता है कि सत्याग्रह, अहिंसा, अनशन और असहयोग आदि के बल पर ही एक बूँद खून बहाए बिना कभी सूर्य अस्त न होने वाले साम्राज्य के मालिक उस समय की महाशक्तिशाली अंग्रेजों से भारत वर्ष को मुक्त करने में महात्मा गांधी किस तरह सफल हुए।

दुबले-पतले, सामान्य शरीरवाले गांधी जी ने सत्य, अहिंसा के बल पर ही दुनिया के सामने जो अकल्पनीय और अविश्वसनीय सफलता पाई और एक नया मिसाल पेश किया, उससे सारी दुनिया चकित रह गई। दुनिया के सबसे तेज दिमाग के माने जाने वाले वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने तो यहाँ तक कह दिया कि -- आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।

दूसरे विश्वयुद्ध के भयंकर परिणामों को देखते हुए शायद आइंस्टाइन ने कहा था--"... इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दुनिया के सभी लोग गांधीजी के आदर्श और उपदेशों को अपनी बुनियादी नीति के रूप में स्वीकार करें। इसी में संसार का कल्याण है।"

आइंस्टाइन के मन में गांधीजी के प्रति अपार सम्मान था। उनके घर की दीवारों में दो तस्वीरें टंगी थीं, जिनमें एक तस्वीर थी -- महात्मा गांधी की।

 जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा की संकुचित राजनीति के इस दौर में, बाहुबल, हथियारों के शक्ति प्रदर्शन के इस दौर में आज भले ही गांधीजी की समालोचना होती हो, उनकी प्रासंगिकता कम आँकी जाती हो, लेकिन पूरे विश्व में स्थायी शांति लाने के लिए व्यक्ति-व्यक्ति से लेकर देश-देश के बीच की दुश्मनी मिटाने के लिए गांधीवाद का कोई विकल्प नहीं। गांधी का मार्ग ही दिन-ब-दिन बढ़ते युद्ध और आतंक के वातावरण को मिटा सकता है। बारूद के ढेर पर खड़ी दुनिया में गांधी दर्शन की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ रही है।

सामान्य व्यक्तियों का जीवन मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाता है। अस्त्र-शस्त्रों का बल रखने वाले सम्राटों का साम्राज्य उनकी मृत्यु के सौ-पचास साल बाद तक कायम रहता है। लेकिन सत् विचारों का साम्राज्य सनातन रूप में कायम रहता है। हजारों साल पहले रचित वेद, उपनिषद, गीता के वचन, वेदव्यास, वाल्मीकि के ग्रंथों के संदेश राम, कृष्ण, बुद्ध के जीवन-आदर्श और सदुपदेश आज भी समाज को नई राह दिखाते हैं। हमारे ही समय में जन्म लेने के कारण गांधी जी को हम हमारे ही समाज के किसी सामान्य व्यक्ति के रूप में देखते हैं। आलोचना-समालोचना करते हैं। संकुचित दृष्टिकोण अपनाते हैं। जाति,धर्म, भाषा, संप्रदायों के नाम पर नफरत की राजनीति के चश्मे पहन कर उन पर आरोप प्रत्यारोप मढ़ते हैं। लेकिन गांधीजी का व्यक्तित्व इन सभी से परे था।

गांधी जी वास्तव में एक संत थे। सत्य-सनातन विचार और संस्कार अपनाने वाले आधुनिक युग के संत। कहा जाता है संत का अंत नहीं होता। संत देहमुक्त होकर अनंत हो जाता है। यह विडंबना ही है कि जिंदगी भर सत्य और अहिंसा की राह पर चलने वाले संत ही हिंसा के शिकार हुए। बंदूक की गोलियों में शरीर का अंत करने की शक्ति भले ही हो, विचारों का अंत वह नहीं कर सकतीं। गांधी तो एक विचार बन चुके थे। कुछ गोलियाँ उन्हें कैसे समाप्त करतीं।

अँधेरा जितना घना होता है, दीये का प्रकाश उतना ही अधिक चमकीला दिखाई देता है। विश्व जितना ही अधर्म, असत्य, अन्याय, अशांति, युद्ध, आतंक आदि के अँधेरे से ग्रस्त होगा, गांधीवाद और भी अधिक चमकीला दीया बनकर संसार को राह दिखाएगा। गांधी जी आज विश्व के लिए सिर्फ दीया नहीं, प्रकाशस्तंभ बन चुके हैं। विश्व के अनगिनत नेता गांधी जी के विचारों से प्रभावित हैं। दक्षिण अफ्रीका के नेलसन मंडेला, अफ्रीकी अमेरिकी नेता मार्टिन लूथर किंग, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन, बर्मा(म्याँमार) की वर्तमान लोकप्रिय नेत्री आंग सान सू की, तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा आदि विश्व के अनेक नेताओं पर गांधी जी के जीवन दर्शन और आदर्श का गहरा प्रभाव रहा है।

कई लोग कहते हैं कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। लेकिन मजबूरी नहीं, मजबूती का दूसरा नाम है महात्मा गांधी। उनकी मजबूत संकल्प शक्ति और मजबूत इरादों ने ही उन्हें महात्मा गांधी बनाया। उनके दुबले-पतले शरीर में भी लोहे की मजबूती थी। वे कहा करते थे -- मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातों से हम भी प्रेरणा ले सकते हैं, जैसे -- गांधीजी दूसरों के बजाय खुद पर विश्वास करते थे। वह कठोर संकल्प शक्ति के धनी थे। वे कहा करते थे कि कमजोर लोग कभी किसीको क्षमा नहीं करते। क्षमा करना तो मजबूत लोगों की विशेषता है। वह अपनी ही गलतियों से ज्यादा सीखते थे। वे चरित्र के भी उतने ही मजबूत थे। वह सत्य और अहिंसा के परम समर्थक थे। हिंसा-प्रतिहिंसा के बारे में उनका कहना था कि आँख के बदले आँख लेने का कार्य तो पूरे विश्व को अंधा बना कर रख देगा। अतः हिंसा-प्रतिहिंसा के बदले अहिंसा को अपनाकर ही हम विश्व को बचा सकते हैं। युद्ध से किसी मसले का हल नहीं हो सकता। वे अपना काम यथासंभव खुद ही करते थे। वे समय के अत्यंत पाबंद थे।  वे रोजाना अपने सभी कार्य समय पर करते थे।

आज उनकी जन्मजयंती के पावन अवसर पर मेरा सभी से आग्रह है कि आएँ, हम सभी उनके जीवन आदर्श को अपनाएँ। अपने मन में सत्य, अहिंसा, प्रेम, सद्भावना जगाएँ। समाज और देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाएँ। 2 अक्टूबर का दिन भले ही उनकी जन्मजयंती मनाने और उन्हें स्मरण करने का एक दिवस और अवसर है परंतु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यहीं हमारा कर्तव्य समाप्त नहीं होता। हमें उनके सद्भावपूर्ण विचारों को वर्ष भर, जीवनभर अपने दैनिक जीवन में सामाजिक राजनीतिक जीवन में हमारे आचार विचार में निष्ठा के साथ अपनाना होगा यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी अंत में आज के इस पावन अवसर पर पधारे हुए सभी गणमान्य व्यक्तियों और दर्शकों का स्वागत और अभिवादन करते हुए अपना मंतव्य यहीं समाप्त करता हूं धन्यवाद











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